बिवाश पाण्डव



बिवाश पाण्डव 
वैज्ञानिक- ई
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भारत के उड़ीसा शहर के महानदी के तट पर स्थित छोटे ढालानी शहर में मेरा बचपन बीता। भीष्म गर्मी में महानदी के शुष्क रेतीले तटों पर एवं ब्लैक बैलीड टर्न के घोसलों को खोजना मेरा समय व्यतीत करने का शौक था। इस किशोरावस्था प्रवृत्तियों (व्यवहारों) को छोड़ने में मुझे कुछ समय लगा। वे भीषण गर्मी आनंददायक सर्दियों का अनुकरण करने वाली थी। महानदी नदी के 15-20 किमी के दायरे में, जहां मेरा बचपन बीता, सर्दी के मौसम में प्रवासी वाटरफाउल का अच्छा समूह मिलता था। रूड्डी शैलडक एवं बारहैडड गीज के समूहों को देखने में जीवविज्ञान में स्नातक किया तब मैं इस क्षेत्र के जलपक्षियों से भली भांति परिचित था। मुलायम भूमि पर मानसून में लैसर विसलिंग टील्स अपने शावकों के साथ, गर्मियों में बैरोन हिलाक्स में पुकारते ग्रे-पेट्रीज, पिनटेल से भरी नदी, सर्दियों में शोवेलर व गेडवाल आदि सभी मेरे आसपास थे। इतने सुन्दर स्थान में बचपन बीतने का अनुमान लगाया जा सकता है। महानदी नदी के तट पर बिताया हुआ समय ही प्रकृति इतिहास में अपना कैरियर बनाने में सहायक हुआ।

1991 में, भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में विद्यार्थी के रूप में प्रवेश पाने के बाद, मुझे उड़ीसा के भीतर कनिका मैंग्रोव में क्षेत्रीय कार्य करने का अवसर मिला। भीतरकनिका मैंग्रोव वनों का एक छोटा सा भाग है परन्तु इसमें विद्यमान वन्यजीवों की संख्या आश्चर्यजनक है। यह भारत के कुछ तटीय मैदानों में से एक है। जिसमें सिम्पेट्रिक किंग फिशर की (ब्राउन विंग्ड, कोलेरेड, ब्लैक कैप्ड, वाइट थ्रोटेड, पाइड एवं स्माल ब्लू) सर्दियों में यह क्षेत्र प्रवासी वाटर फाउल्स के लिए स्वर्ग के समान है। प्रजनन के लिए निवासी वन पक्षियों का विशाल समूह भीतरकनिका में मैंग्रोव वनों में वाटर मानीटर लिजर्ड का अध्ययन करते हुए मुझे प्रजनन पक्षियों के विशाल समूह को गिनने का अवसर मिला। इस विशाल पक्षी समूह में स्तार्क्स, कार्मोरेन्ट्स, हेरोन्स व एगे्रट्स आदि। विभिन्न प्रकार की प्रजातियों की 10,000 घोंसले गिने गये। घुटने तक कीचड़ वाले मगरमच्छ बहुल क्षेत्र में पक्षियों की संख्या की गिनती करना मुझे हमेशा ही आकर्षित करता रहा तथा कार्य को जारी करने का उत्साह बना रहा। भीतरकनिका में पक्षी जीवन का मुख्य ध्यान रखने योग्य पहलू है।

मैंने 1994 में उड़ीसा के तट के आसपास क्षेत्रों में समुद्री कच्छप के अनुसंधान में अपना कैरियर शुरू किया। भावसं में शोधकर्ता के रूप में कार्य करते हुए मैं प्रतिवर्ष समुद्र तट के किनारे सौ से हजारों की संख्या में कच्छपों के स्वास्थ्य के लिए मॉनिटरिंग कार्यक्रम व दीर्घकालीन शोधकार्य में व्यस्त रहा। उनकी आदतों को अधिक अच्छे से जानने के लिए मैंने अपनी टीम सदस्यों के साथ लगभग 15,000 वयस्क ओलिव रिडले को टैग किया। इसे टैग करने के अभ्यास के दौरान, उड़ीसा तट के आसपास रहने वाले समुद्री कच्छपों के बारे में बहुत सी रूचिकर सूचनाएं प्राप्त हुई। टैग किये गये बहुत से कच्छप उड़ीसा तट से प्रवासी होते हुए श्रीलंका के तटीय क्षेत्रों में पाये गये। उड़ीसा में समुद्री कच्छपों पर कार्य करते हुए प्रतिदिन का अनुभव अविस्मरणीय था। कच्छपों के विशाल समूहों को एक साथ चलते हुए देखना व उनके द्वारा सौ से हजारों की संख्या में अंडे देना एक जीवंत अनुभव था। ओलिव रिडले की हजारों की संख्या से घिरी हुई मेरी अपनी 10 एच पी मोटर बोट तथा गहरीथामा तटीय क्षेत्रों में डाल्फिन के समूहों की स्मृतियां आज भी मेरे मन में ताजा हो उठती हैं।

मैं वर्ष 1999 के अन्त में भावसं में संकाय सदस्य के रूप में कार्यारंभ किया। नियमित प्रशिक्षण एवं शिक्षण कार्यक्रम के अतिरिक्त भावसं ने क्षेत्र में शोध परियोजनाओं को चलाने में एवं नियोजन के बहुत अवसर प्रदान किये। मैंने अपने साथियों- डा. एस. पी. गोयल तथा अभिषेक हरिहर के साथ मनवीय आवासों का स्वेच्छा से पुनर्स्थापन पर कार्य करते हुए राजाजी नेशनल पार्क, उŸाराखण्ड में बाघों तथा इसकी शिकार आबादियों की दीर्घकालीन मॉनिटरिंग का कार्य आरंभ किया। राजाजी राष्ट्रीय पार्क के पूर्वी भाग में मानवीय गतिविधियों के कम होने के तुरन्त बाद ही बाघों की आबादी पर प्रभाव पड़ा तथा चार वर्ष की अवधि के भीतर ही उनका घनत्व दोगुना हो गया।

वर्ष 2007 में, मुझे अन्तर्राष्ट्रीय वल्र्ड वाइल्डलाइफ फंड में नियुक्ति मिली तथा काठमाण्डू नेपाल में कार्यस्थल मिला। इस कार्य के अन्तर्गत, मैंने टाइगर बहुल 11 देशों के 14 विभिन्न भूदृश्यों के आसपास डब्लू डब्लू एफ टाइगर प्रोग्राम में समन्वय किया। एशिया के बाघों के प्राकृतिकवासों की यात्रा का अवसर प्राप्त हुआ। इण्डोनेशिया व मलेशिया जैसे देशों में उनके प्राकृतिकवासों को नष्ट होते देखा, कुछ सफल कहानियां (विशेषकर भारत में) भी सामने आयीं तथा इन वर्षों में मेरा केन्द्रबिन्दु शोध से संरक्षक की ओर परिवर्तित हो गया।

डब्ल्यू-डब्ल्यू इण्टरनेशनल के साथ कार्य अवधि पूर्ण हाने के बाद मैं भावसं में 31 दिसम्बर, 2010 को वापिस आया। भावसं में आने के बाद मैंने संकटग्रस्त प्रजाति प्रबंधन विभाग में कार्य करना आरम्भ किया।