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 मेरा नाम अशोक कुमार है और मैं तमिलनाडु राज का निवासी हूँ। मैंने अपनी स्नात्कोत्तर उपाधि जन्तु विज्ञान में भारतीदसम विश्वविधालय से प्राप्त की है। मैंने स्नोत्कोत्तर में शोधपत्र 'असेसमेन्ट आफ एफिकेसिज़ आफ फार्मर्स फोरेस्ट स्टाफ एण्ड एकिजसिटंग एलीफेंट प्रुफ बैरियर मैकेनिज़्म एन मिटिगेटिंग हयूमन-एलीफेंट कानफिलक्ट पर बैनरघटा नेशनल पार्क, कर्नाटक, दक्षिण भारत से किया। मैं भारतीय वन्यजीव संस्थान दिसम्बर 2009 में शोधकर्ता के रूप में प्रविष्ट हुआ। मेरा शोध का विशय था - 'मानीटरिंग टार्इगर को-प्रीडेटर, प्रे एण्ड दियर हैबिटाट। 12 अगस्त में वाक इन इन्टरव्यू के आधार पर मेरा चयन जूनियर रिसर्च फैलो 'मानीटरिंग सिस्टम फार टाइगर इनटेनिसव पैट्रोलिंग एण्ड इकोलोजिकल स्टेटस (एम स्ट्राइप) परियोजना हेतु हुआ।

 वर्तमान में मैं नागाजर्ुनसागर सीरीसेलम टार्इगर रिजर्व में एम स्ट्राइप परियोजना पर कार्य कर रहा हूं। यह परियोजना 14.9.2011 से लेकर 13.9.2013 तक चलेगी। मैं इस परियोजना में डा. वार्इ.वी. झाला तथा श्री कमर कुरेशी के पर्यवक्षण में कार्य कर रहा हूं।

 मेरीरूचि मुख्यत: विशाल स्तनधारी जानवरों के व्यवहार के अध्ययन में है तथा सुरक्षित क्षेत्रों में मानव-वन्यजीव टकरावरणनीति मेेरे विचार से शिक्षा सबसे बड़ी संरक्षण रणनीति है।

अशोक कुमार   [kumar@wii.gov.in]


स्नातकोत्तर पाठयक्रम के अन्तर्गत मैंने भारतीय वन्यजीव संस्थान में शोध निबन्ध कार्य किया। मुझे वन तथा वनों का स्वछन्द वातावरण बहुत आकर्षित करता हैं। इस कारण मैंने भावसं में 2011 में परियोजनाकर्मी के रूप में प्रवेश किया।

 वर्तमान में मैं भारतीय वन्यजीव संस्थान में पी.एच-डी. कर रहा हूँ तथा मेरा कार्य क्षेत्र कंचनजंगा बायोसिफयर रिजर्व है तथा मैं 'लैण्डयूज पैर्टन बाय वार्इल्ड लार्इफ एण्ड हयूमन विषय पर शोध कर रहा हूँ।

नन्दकिशोर डिमरी  [nkdimri@wii.gov.in]

मैं 'पापुलेशन एसिटमेशन एण्ड इकोलोजी आफ द टाइगर इन सुन्दरवनस परियोजना पर रिसर्च फेलो के रूप में कार्यरत हूं। मेरे सुपरवार्इजर डा0 वार्इ.वी. झाला तथा श्री कमर कुरैशी हैं। मैं सौराष्ट्र विश्वविधालय में पी.एच.डी. विधार्थी के रूप में पंजीकृत हूं। मेरे शोध का ध्येय है बाघ की मानीटरिंग के विभिन्न प्रणालियों का आंकलन तथा इसके द्वारा शिकार किये जाने वाले जानवरों की आबादी, सुन्दरवन टाइगर रिजर्व में।

 मैं पूर्वी हिमालय में पाये जाने वाले स्तनधारी जानवरों तथा कैनिडस, विशेषकर भेडि़या पर कार्य करना चाहती हूं।

मन्जरी राय  [manjari@wii.gov.in]

प्रेसीडेन्सी कालेज, कोलकाता से बी.एस.सी. (आनर्स), जन्तु विज्ञान से करने के पश्चात 2003 में मैने देहरादून सिथति फारेस्ट रिर्सच इन्सटीटूट से एम0एस0सी0 पाठयक्रम में प्रवेश किया। 2005 में मैंंने स्नातकोत्तर उपाधि अर्थशास्त्र तथा प्रबन्धन में स्वर्ण पदक के साथ अर्जित की। मेरा सम्बन्ध भारतीय वन्यजीव संस्थान से 2004 से है, जब मैं यहा आरमिभक दौर में मास्टर एफलिएट बना तथा बाद में मैने रिसर्च फैलो के रूप में यहा डा0 वार्इ0वी0 झाला तथा कमर कुरैशी के मार्गदर्शन में पी0एच0डी0 के लिए शोध कार्य किया। यह उपाधि मुझे फोरेस्ट रिसर्च इन्स्टीटयूट, डीम्ड यूनिर्वसिटी से प्राप्त हुर्इ।

 एम0एस0सी0 पाठयक्रम के अन्र्तगत मैने भारतीय वन्यजीव संस्थान के प्रे-एसेसमैन्ट स्टडी फार रिइन्ट्रोडयूसिंग एसियाटिक लायन इन कूनो वाइल्डलाइफ सेन्चुरी, मध्य प्रदेश पर शोध निबन्ध लिखा। इस शोध में मैंने प्रे घनत्व डाटा तथा वासस्थल सिट्रप विडथ माडल कुनौ वन्यजीव अभ्यारण्य के प्रस्तुत किये।

 अक्टूबर 2005 से मैं भारतीय वन्यजीव संस्थान के 'शेरो की पारिसिथतिकी' के अनुसंधान परियोजना पर कार्य कर रहा हूँ। सुरक्षा एवं प्रबन्धन के प्रयासों के कारण आज गिर में शेरो की संख्या 400 हो गयी हैं जो 9000 वर्ग कि0मी0 के कृषि तथा वन क्षेत्रों में फैले हुए है। यह संख्या पहले 50 थी और कुछ 100 वर्ग कि0मी0 के क्षेत्रफल तक फैले हुए थें। शेरो तथा अन्य वन्यजीवों का संरक्षण मानवीय प्रयोग भू-खण्ड में करना आवश्यक है क्योकि भारत में सुरक्षित क्षेत्र तन्त्र, जहाँ केवल वन्यजीवों की आबादी को बसाया जा सकें, का अभाव है। गिर भू-खण्ड में भूमि प्रयोग के स्वरूप के अप्रत्याशित परिर्वतन के कारण शेर के संरक्षण केवल मैटापापुलेशन ढाचें के आधार पर तथा मानव वन्यजीव टकराव को कम करके हो सकता है।

 उचित प्रबन्धन वही है जो टकराव की सिथति की समय पर रोकथाम कर सके तथा मानव समुदाय अपने निकटतम क्षेत्रों में वास करने वाले मासांहारी वन्यजीवों के प्रति सहनशीलता रखें। विज्ञान पर आधारित मेरे शोध पत्र में इसी विषय पर विस्तृत व्याख्या की गयी है। मैने अपने अध्ययन में शेरों की पारिसिथतिकी की भूदृश्य स्तर को समझाने के लिए स्टेट आफ दी आर्ट रेडियोटेलीमेट्री का प्रयोग किया। मेरे अध्ययन में शेर की आबादी के गतिशीलता, कि्रया कलाप, संसाधन चयन, भोजन की आदत तथा मानव-शेर टकराव के आर्थिक पहलू पर विशेष बल दिया है। अपने सात वर्षो के शेरो के अध्ययन में मैने शेरो के डेमोग्राफिक मानकों के विस्तृत दस्तावेज तैयार किये है। वास स्थल गलियारे, जो मेटा पापूलेशन डायनामिक्स के लिए अनिवार्य है, की विस्तृत व्याख्या की है। तथा भविष्य में मानव आदिपत्य गिर लेण्ड स्केप में शेरो के संरक्षण हेतु जैविक तथा सामाजिक कैरिंग को चिन्हीत किया है।

कौशिक बनर्जी  [kausik@wii.gov.in]


मैंने कानपुर विश्वविधालय से स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की है तथा 2009 में भारतीय वन्यजीव संस्थान मेें टार्इगर मानीटरिंग परियोजना 'मानीटरिंग टार्इगर्स, को-प्रीडेटर्स, प्रे एण्ड दियर हैबिटाट पर कार्य करना आरम्भ किया। इसके पश्चात मैंने 'मानीटरिंग सोर्स पापुलेशन आफ टाइगर इन कान्हा टार्इगर रिजर्व नामक परियोजना पर डा0 वार्इ.वी. झाला तथा प्रोफेसर कमर कुरैशी के सानिध्य में कार्य किया।

 इस परियोजना के उददेश्य है बाघाें की आबादी का अनुमान लगाना तथा शिकार अबादी की गतिशीलता, प्रे पापुलेशन की अधिकतम आबादी का अनुमान लगाना।

 भविष्य में मेरी रूचि खुरदार जानवरों के सामुदायिक ढांचे के आधार पर संसाधन तथा स्पेशियल पारिसिथति में है।

 नेहा अवस्थी  [neha@wii.gov.in]

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