वन्यजीव स्वास्थ्य प्रबंधन



भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा अपनी ओर स पहल करके एक स्वास्थ्य कार्यक्रम भी चलाया जा रहा है। यह कार्यक्रम संरक्षण प्रबंधन में मील के पत्थर की तरह सिद्ध हो रहा है। यह कार्यक्रम स्वास्थ्य कर्मियों, वन्यजीव प्रबंधकों, पारिस्थितिकी विदो तथा संरक्षण कर्मियों के मिलेजुले प्रयासों से चलाया जाता है तथा यह शैक्षिणिक तथा प्रायोगिक वन्यजीव अनुसंधान का एक आवश्यक भाग है। यह कार्यक्रम पशु विज्ञान तथा वन्यजीव अनुसंधान के विषयों को सफलतापूर्वक सम्पूर्ण करता है। यह एकीकरण भारतीय वन्यजीव संस्थान, संरक्षित क्षेत्रों के प्रबंधकों, राज्य वन्यजीव अभिकरणो , राज्यों के पशुपालन विभागों, पशु चिकत्सा कॉलिजो, भारतीय पशु चिकत्सा अनुसंधान केन्द्र (आर्इ.वी.आर.आर्इ.) तथा भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आर्इ.सी.आर.आर्इ.)  के सहयोग से सम्भव हुआ है।

वन्यजीवों के संसधोनो के स्वास्थ्य प्रबंधन को सुदृढ़ बनाने के उददेश्य से 1994 में पूरे देश में भारतीय वन्यजीव स्वास्थ्य सहकारिता का विकास (आर्इ.डब्ल्यू.एच.सी)  कार्यक्रम आरम्भ किया गया। यह कार्यक्रम यू.एस.जी.एस. राष्ट्रीय वन्यजीव स्वास्थ्य केन्द्र; एन.डब्ल्यू.एच. की सहभागिता से चलाया जा रहा है।

आनन्द (गुजरात), गुवाहाटी (आसाम), चिन्नर्इ (तमिलनाडु), जबलपुर (मध्यप्रदेश), हिसार (हरियाणा) में पशु विज्ञान संस्थाओं में आर्इ.डब्ल्यू.एच.सी के पाँच क्षेत्रीय केन्द्र विकसित किये गये हैं। अपने-अपने क्षेत्रों में वन्यजीव स्वास्थ्य माँनीटरिंग कार्यक्रमों को चलाने के लिये इन केन्द्र ने सदस्यों को पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित किया है तथा स्वास्थ्य साधनों का भी विकास किया गया है।

मानव-वन्यजीव टकराव तथा पशुओं की स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं के निदान की सबसे अधिक जिम्मेदारी इस संकाय की है, जिसका निर्वाहन यह संकाय मल्टी डिस्प्लेनरी प्रयासों के द्वारा कर रहा है।

शिक्षा तथा प्रशिक्षण
वन्यजीव स्वास्थ्य प्रबंधन, भारतीय वन्यजीव संस्थान के नियमित तथा अल्पकालीन पाठ्यक्रम तथा प्रशिक्षण कार्यक्रमों का महत्वपूर्ण भाग है। यह पाठ्यक्रम, कार्यक्रम प्रबंधकों, पशुरोग चिकित्सकों तथा जैव वैज्ञानिकों को वन्यजीवों-पशुओं के पारस्परिक मेलजोल से उत्पन्न रोगों को समझने में तथा उनकी रोकथाम करने में उपयोगी हैं। वन्यजीव स्वास्थ्य प्रबंधन में वन्यजीव रोग रोकथाम तकनीक, वन्यजीव क्षति रोकथाम, वन्यजीव मृत्यु कारकों का क्षेत्रिय सर्वेक्षण आदि क्षेत्रों में प्रशिक्षण वर्कशाप का भी आयोजन किया जाता है।

एप्लार्इड अनुसंधान
यह संकाय वन्यजीव प्रबंधकों को, जीव वैज्ञानिकों को तथा पशु चिकित्सा विशेषज्ञों को उन क्षेत्रों, उस पारिस्थितिकी में जहां संकटग्रस्त प्रजाति पायी जाती हैं, एक स्थान पर उन्हें सीमित रखना, उनकी बीमारियों की रोकथाम करना तथा वन्यजीव में दूरमापी जैसी सेवाओं की अत्यन्त आवश्यकता पड़ती है, पशु चिकित्सा सेवायें प्रदान करता है। वन्यजीव पशुओं की स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं का निदान करने सम्बन्धी कार्य यह संकाय भिन्न पशु चिकित्सा संस्थाओं के सक्रीय सहयोग से कर रहा है। इस सन्दर्भ में सर्वेक्षण, माँनीटरिंग, अनुसंधान, रोगों की रोकथाम आदि कार्य किये जा रहे हैं।


राज्य वन्यजीव
एजेंसीयों को सलाह देना 
यह संकाय वन्यजीव शाखा को मृत्युदर का अध्ययन करने में मानव वन्यजीव टकराव को न्यूनतम करने सम्बन्धी, वन्यजीवों के पुनर्वास, वन्यजीव  में स्थानीय समुदायों की भेधता कम करने सम्बन्धी तथा संकटग्रस्त पशुओं को सुरक्षित पारिस्थितिकी में स्थान्तान्त्रित करने सम्बन्धी परामर्श देने का कार्य भी करता है।

अन्तर्राष्टी्रय सहयोगपूर्ण परियोजनाये
इस संकाय ने अन्तर्राष्ट्रीय परियोजनाओं जैसे "सार्इबेरियन सारस को बचाने और हिमालयन आईबेक्स  की पारिस्थितिकी" इबक्स में सक्रिय सहयोग दिया है। वर्तमान में यह संकाय जूओलौजिस्ट सोसाइटी आफ लंदन के सहयोग से एक परियोजना का विकास कर रहा है। इस सन्दर्भ में भारतीय वन्यजीव स्वास्थ्य सहकारिता जो यू.एस. फिश एण्ड वाइल्डलार्इफ सर्विसेस तथा यू.एस.जी.एस. नेशनल वाइल्डलार्इफ हेल्थ सेन्टर के सहयोग से विकसित किया गया है, इसका बहतरीन उदाहरण है। विस्तृत वन क्षेत्रों में व्याप्त वन्यजीव समस्यायें, क्षेत्रीय पशु चिकित्सा संस्थानों तथा उनमें स्थापित डायनोसिटक लेबोरेटरीज के सहयोग से सुलझायी जाती हैं।

पराग निगम, एम.वी.एस.सी,
वैज्ञानिक- डी.
दूरभाष : 0135-2640111-115
विस्तार संख्या : 219
ईमेल : nigamp@wii.gov.in